Rani Laxmi Bai in Hindi | रानी लक्ष्मी बाई के बारे में जरूरी जानकारी

About Rani Laxmi Bai in Hindi | रानी लक्ष्मी बाई का जीवन

Womens Freedom Fighters By Apr 01, 2023 1 Comment

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई (Rani Lakshmibai of Jhansi) की वीरता की कहानियां बहुत कम लोगों को मालूम हैं। उनका जिक्र आते ही हम अपने बचपन में लौट जाते हैं,और सुभद्रा कुमारी चौहान की वह पंक्तियां गुनगुनाने लगते हैं जिनमें वह कहती हैं, “खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।”तो आइए पड़ते हैं, इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्जरानी रानी लक्ष्मीबाई की हिम्मत, शौर्य और देशभक्ति की कहानी।

Rani Laxmi Bai in Hindi | रानी लक्ष्मी बाई के बारे में जरूरी जानकारी

Childhood of Rani Lakshmibai in Hindi | रानी लक्ष्मी बाई का शरुआती जीवन

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म सन 19 नवंबर 1828 में, वाराणसी ज़िले के भदैनी मेंमोरोपन्त तांबे के घर में हुआ। उस बच्ची का नाम रखा गया – मनिकर्निका। नाम बड़ा था इसलिए घर वालों ने उसे मनु कहकर बुलाना शुरु कर दिया जिसे बाद में दुनिया ने रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना।मनु अभी बोलना भी नहीं सीख पाई थी, लेकिन उनकी चतुराई ने सबका दिल जीत लिया।

देखते ही देखते, वह कब चार साल की हो गईं, किसी को पता नहीं चला।फिर अचानक एक दिन, उनके सिर से माँ भागीरथी बाई का साया हट गया। उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर ली थीं। अब पिता मोरोपन्त तांबे ही थे, जिन्हे मनु को माता और पिता दोनों बनकर पालना था।

बिन मां की बेटी का पालन-पोषण करना आसान नहीं था, पर पिता मोरोपन्त ने धैर्य नहीं खोया। न ही उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी से, मुंह मोड़ा। उन्होंने मनु को कभी भी मां की कमी, महसूस नहीं होने दी और एक बेटे की तरह ही बड़ा किया। शायद उन्होंने, बचपन में ही मनु के हुनर को पहचान लिया था। तभी पढ़ाई के साथ ही उन्होंने मनु को युद्ध कौशल भी सिखाए। धीरे-धीरे मनु घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और तीरंदाज़ी में पारंगत होती गईं।

देखते ही देखते, मनु एक योद्धा की तरह कुशल हो गईं। उनका ज़्यादा से ज़्यादा वक्त अब लड़ाई के मैदान में गुज़रने लगा। कहते हैं कि मनु के पिता संतान के रुप में पहले, लड़का चाहते थे ताकि उनके वंश को आगे बढ़ाया जा सके। लेकिन जब मनु का जन्म हुआ, तो उन्होंने तय कर लिया थाकि वह उसे ही एक बेटे की तरह तैयार करेंगे। मनु ने भी अपने पिता को निराश नहीं कियाऔर उनके सिखाए हर कौशल को जल्द से जल्द सीखती गईं।

इसके लिए वे लड़कों के सामने मैदान में उतरने से भी, नहीं कतराईं। उनको देखकर सब उनके पिता से कहते थेकि तुम्हारी बिटियां बहुत ही खास है, और ये आम लड़कियों की तरह बिल्कुल भी नहीं है। 

रानी लक्ष्मी बाई के बारे में जरूरी जानकारी | Important information about Rani Laxmi Bai

Role/भूमिकासन 1857 का स्वतंत्रता संग्राम
Born/जन्म19 नवंबर 1828 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में
Death/मौत23 वर्ष की आयु में 18 जून 1858 को ग्वालियर में
Cause of Death/मौत का कारणग्वालियर में अंग्रेज़ो से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई
Mother/मातामाँ भागीरथीबाई
Father/पितामोरोपंत तांबे
Husband/पतिगंगाधर राव
Children/बच्चेउन्हें एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई थी लेकिन चार महीने की अल्पआयु में ही उसकी मृत्यु हो गई

Rani Laxmi Bai in Hindi Information

मनु के बचपन में नाना साहिब उनके दोस्त हुआ करते थे। वैसे तो दोनों में उम्र का काफ़ी बड़ा फ़ासला था। नाना साहिब मनु से लगभग, दस साल बड़े थे। लेकिन उनकी दोस्ती के बीच कभी उम्र का यह अंतर, नहीं आया। नाना साहिब और मनु के साथ एक शख्स और थाजो अक्सर इन दोनों के साथ रहता था।

उस शख्स का नाम था – तात्या टोपे।बचपन से ये तीनों एक साथ खेलते,और युद्ध की प्रतियोगिताओं में भी एक साथ ही भाग लेते रहते थे।माना जाता है, कि रानी लक्ष्मी बाई ने जबपहली आज़ादी की जंग लड़ी थीतब भी इन दोनों ने उनकाकंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया था।

मनु बचपन से ही ये मानती थीं कि वह लड़कों के जैसे सारे काम कर सकती हैं।एक बार उन्होंने देखा कि उनके दोस्त, नाना एक हाथी पर घूम रहे थे। हाथी को देखकर, उनके अन्दर भी हाथी की सवारी की जिज्ञासा जागी। उन्होंने नाना को टोकते हुए कहा कि वह हाथी की सवारी करना चाहती हैं। इस पर नाना ने उन्हें, सीधे इनकार कर दिया।उनका मानना था, कि मनु हाथी की सैर करने के योग्य नहीं हैं।ये बात मनु के दिल को छू गई और उन्होंने नाना से कहा कि एक दिन उनके पास भीअपने खुद के हाथी होंगे।आगे जाकर जब वे झांसी की रानी बनीं,तो ये बात सच साबित हुई।

झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का विवाह और शासन  | Marriage & Reign as Rani of Jhansi

रानी लक्ष्मी बाई (मनु)  महज़ 13 – 14 साल की रही होंगी जब उनकी शादी झांसी के राजा, गंगाधर राव से कर दी गई।बच्चे का नामकरण होने के अगले दिन ही गंगाधर राव चले गए। रानी लक्ष्मीबाई को अपनी खुद की संतान न होने के कारण झांसी छोड़ने का आदेश दिया गया था।
उन्हें भी एक पुत्र था, लेकिन चार महीने की छोटी उम्र में उसकी मृत्यु हो गई। राजा गंगाधर राव ने अंग्रेजों से अपने राज्य को बचाने के लिए एक बच्चे को गोद लिया। बच्चे को दामोदर राव नाम दिया गया।

बच्चे का नामकरण होने के अगले दिन ही गंगाधर राव चले गए। रानी लक्ष्मीबाई को अपनी खुद की संतान न होने के कारण झांसी छोड़ने का आदेश दिया गया था। और गवर्नर जनरल, लॉर्ड डलहौज़ी ने झांसी पर कब्ज़ा कर लिया और रानी को गद्दी से बेदखल करने का आदेश, जारी कर दिया। लेकिन स्वाभिमानी रानी ने फैसला कर लिया था कि वो अपनी झांसी, अंग्रेज़ों को नहीं देंगी।

जब अंग्रेजी दूत रानी के पासकिला खाली करने का फ़रमान ले कर आये तो रानी लक्ष्मी बाई ने गरज कर कहामैं अपनी झांसी, नहीं दूंगी।”जनवरी 1858 में, अंग्रेजी सेना झांसी पर कब्जा करने के लिए, आगे बढ़ी। लक्ष्मीबाई युद्ध के मैदान में कूद पड़ीं,और उनकी सेना ने अंग्रेज़ों को आगे बढ़ने से रोक दिया। लड़ाई दो हफ़्तों तक चली और अंग्रेजी सेना को पीछे हटना पड़ा। लेकिन अंग्रेज बार-बार, दोगुनी ताकत के साथ वापस आ जाते। झांसी की सेना लड़ते-लड़ते, थक गई थी। आखिरकार, अप्रैल 1858 में अंग्रेज़ों ने झांसी पर कब्जा कर लिया। रानी लक्ष्मीबाई अपने कुछ भरोसेमंद साथियों के साथ अंग्रेज़ों को चकमा दे कर, किले से निकलने में कामयाब हो गईं।

रानी लक्ष्मी बाई का ग्वालियर पर कब्जा और रानी लक्ष्मी बाई की शहादत | Capture of Gwalior by Rani Laxmi Bai and Martyrdom of Rani Laxmi Bai

रानी लक्ष्मी बाई और उनकी सेना कालपी जा पहुंची और उनके द्वारा ग्वालियर के किले परकब्ज़ा करने की, योना योजना बनाई गई। ग्वालियर के राजा किसी भी हमले की तैयारी में नहीं थे। 30 मई 1858 के दिन रानी अचानक अपने सैनिकों के साथग्वालियर पर टूट पड़ीं,और 1 जून 1858 के दिन, ग्वालियर के किले पर रानी का कब्ज़ा हो गया। ग्वालियर अंग्रेजी हुकूमत के लिए, बहुत महत्वपूर्ण था। ग्वालियर के किले पर रानी लक्ष्मीबाई का अधिकार होना, अंग्रेज़ों की बहुत बड़ी हार थी। अंग्रेज़ों ने ग्वालियर के किले पर, हमला कर दिया। रानी ने भीषण मार-काट मचाई। बिजली की भांति, रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेज़ों का सफ़ाया करते हुए,आगे बढ़ती जा रही थीं।

ग्वालियर की लड़ाई का दूसरा दिन था। रानी लड़ते-लड़ते, अंग्रेज़ों से चारों तरफ से घिर गईं। वे एक नाले के पास आ पहुंचीं जहां आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था,और उनका घोड़ा, नाले को पार नहीं कर पा रहा था। रानी अकेली थीं, और सैकड़ों अंग्रेज़ सैनिकों ने मिलकररानी पर वार करना शुरू कर दिया। रानी घायल हो कर, गिर पड़ीं। लेकिन उन्होंने अंग्रेज़ सैनिकों को जाने नहीं दिया और मरते-मरते भी, उन्होंने उन सभी को मार गिराया।

लक्ष्मीबाई नहीं चाहती थीं कि उनके मरने के बाद, उनका शरीर को अंग्रेज छू पाएं। वहीं पास में एक साधु की कुटिया थी। साधु उन्हें उठा कर, अपने कुटिया तक ले आए। लक्ष्मीबाई ने साधु से विनती की, कि उन्हें तुरंत जला दिया जाए, और इस तरह 18 जून 1858 के दिन, ग्वालियर में रानी वीरगति को प्राप्त हो गईं। रानी लक्ष्मीबाई का जीवन, हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। इससे हम संघर्ष का नया अध्याय, लिख सकते हैं। अगर रानी लक्ष्मीबाई और उन जैसी अन्य महानतम महिलाओं नेहमारे देश के लिए संघर्ष न किया होतातो शायद हम आज भी अंग्रेज़ों के गुलाम होते!

Dialogue of Rani Laxmi Bai in Hindi

रानी लक्ष्मी बाई: “जब तक मेरे लोग अंग्रेजों के दमनकारी हाथ के नीचे पीड़ित हैं, तब तक मैं चुप नहीं रहूंगी। एक रानी के रूप में मेरा कर्तव्य है कि मैं अपनी प्रजा की रक्षा और बचाव करूँ, और मैं अपने पूरे अस्तित्व के साथ ऐसा करूंगी।”

ब्रिटिश अधिकारी: “महामहिम, मैं आपसे पुनर्विचार करने का आग्रह करता हूं। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी इस क्षेत्र में सर्वोच्च प्राधिकरण है, और कोई भी प्रतिरोध केवल आपके लोगों के लिए और पीड़ा लाएगा।”

रानी लक्ष्मी बाई: “मैं आपके तथाकथित अधिकार के सामने नहीं झुकूंगी। मैंने प्रत्यक्ष रूप से आपके सैनिकों द्वारा निर्दोष नागरिकों पर किए गए अत्याचारों को देखा है, और मैं इसे जारी नहीं रहने दूंगी। मैं एक महिला हो सकती हूं, लेकिन मैं भी हूं।” एक योद्धा, और मैं जो सही है उसके लिए लड़ूंगा।”

ब्रिटिश अधिकारी: “”आपकी अवज्ञा से केवल रक्तपात और जीवन का नुकसान होगा। मैं तर्क देखकर शांति से आत्मसमर्पण करने का अनुरोध करता हूँ।”

रानी लक्ष्मी बाई: “मैं कभी उन लोगों के सामने झुकूंगी जो मेरे लोगों को गुलाम बनाना चाहते हैं। मैं अपने राज्य के सम्मान और स्वतंत्रता के लिए लड़ूंगा।”

रानी लक्ष्मी बाई के बारे में आप क्या जानते हैं?

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म सन 1828 में, वाराणसी ज़िले के भदैनी मेंमोरोपन्त तांबे के घर में हुआ। उस बच्ची का नाम रखा गया – मनिकर्निका। नाम बड़ा था इसलिए घर वालों ने उसे मनु कहकर बुलाना शुरु कर दिया जिसे बाद में दुनिया ने रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना।मनु अभी बोलना भी नहीं सीख पाई थी, पर उनके चुलबुलेपन ने उन्हें सबका दुलारा बना दिया। देखते ही देखते, वह कब चार साल की हो गईं, किसी को पता नहीं चला।फिर अचानक एक दिन, उनके सिर से माँ भागीरथी बाई का साया हट गया। उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर ली थीं। अब पिता मोरोपन्त तांबे ही थे, जिन्हे मनु को माता और पिता दोनों बनकर पालना था।

रानी लक्ष्मी बाई का नारा क्या था?

रानी लक्ष्मी बाई का जिक्र आते ही हम अपने बचपन में लौट जाते हैं,और सुभद्रा कुमारी चौहान की वह पंक्तियां गुनगुनाने लगते हैं जिनमें वह कहती हैं, “खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी

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